CHHAPRA DESK – वट सावित्री सुहागिन महिलाओं के द्वारा अपने अखंड सौभाग्य के लिए किया जाता है. यह व्रत ज्येष्ट माह के अमावस्या को मनाया जाता है. माना जाता है कि इसी दिन शनि भगवान का जन्म भी हुआ था. वट सावित्री व्रत में सुहागिन अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. इस पूजा में वट वृक्ष की पूजा का खास महत्व है. इस दिन वट वृक्ष के नीचे बैठ कर पूजा करने और सावित्री सत्यवान की कथा श्रवण करने का खास महत्व है.
सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष की परिक्रमा लगाकर उसमें कच्चा सूत बांधती हैं. इसके अलावा सूत एवं वट वृक्ष के पत्ते को गले और बालों में भी धारण करती हैं. मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति की उम्र लंबी होती है. इस व्रत को लेकर ऐसी कथा है कि राजर्षि ऋषि की इकलौती संतान सावित्री ने वर के रूप में सत्यवान का चयन किया था. जहां नारद मुनि के द्वारा बताया गया कि सत्यवान की आयु आधी है.
बावजूद इसके सावित्री के द्वारा सत्यवान से शादी की गई और नियत समय पर सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने के दौरान मृत्यु को प्राप्त हुए. लेकिन, सावित्री अपने पति व्रत धर्म के बदौलत पति के प्राण लेने पहुंचे यमराज के पीछे लग गई और आरजू मिन्नतें करने लगी. यमराज के लाख मना करने के बाद भी उनके पीछे-पीछे चलती रही. अंत में यमराज ने सावित्री के पतिव्रत धर्म को देखते हुए प्रसन्न हुए और तीन वर मांगने को कहा था.
जिसमें सावित्री ने पहला वर सत्यवान के अंधे माता-पिता की आंखों की रोशनी मांगी थी और दूसरे वर के रूप में उन्होंने सत्यवान के छिन गये राज-पाट की वापसी मांगी जबकि तीसरे वर में उन्होंने 100 पुत्र का वरदान मांगा. तब यमराज समझ गये और तथास्तु कहते हुए सावित्री को अखंड सौभाग्यवती का वरदान दिया था. उस समय सावित्री और सत्यवान वटवृक्ष के नीचे बैठे थे. इसलिए अपने अखंड सौभाग्य की रक्षा के लिए सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा करती चली आ रही है.