CHHAPRA DESK- वो दिन और वो प्रथा अब समाप्त हो गये जब होलिका दहन को लेकर 15 दिन पूर्व से मोहल्ले के बच्चे घर-घर घूम कर गोईठा और लकड़ी की मांग करने करते थे. जिसमें उनके बोल संगीत में कुछ ऐसे ही होते थे कि “ए यजमान दु गो गोईठा दी”. वहीं जिस घरवाले के द्वारा उन्हें गोईठा या लकड़ी नहीं दिया जाता था, उनको चिढ़ाने के लिए बच्चों की टोली कहती थी कि “ए यजमान दु गो गोईठा दी ना देहेम त राउर दुअरिया पर छेड़ बकरी” वह दिन भी अजीब थे जब होलिका दहन से 15 दिन पूर्व प्रतिदिन की यह घटना क्रम हुआ करते थे और मजबूरन लोग होलिका दहन के लिए घर-घर से गोईठा और लकड़ी दिया करते थे.
क्या है होलिका दहन की मान्यता और कथा?
होलिका दहन असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है. भारतीय संस्कृति में ऐसी मान्यता है कि होलिका को भगवान से वरदान में 1 शॉल प्राप्त हुआ था. जिसे ओढ़ने के बाद होलिका को अग्नि जला नहीं सकती थी. इसी वरदान को लेकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से उसके भतीजे भक्त प्रहलाद को जलाने का आदेश दिया और होलिका शॉल ओढने के बाद प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में समाहित हुई. लेकिन, भगवान विष्णु ने ऐसा चमत्कार किया कि होलिका अग्नि में जलकर भस्म हो गई.
जबकि उनके भक्त प्रहलाद अग्नि से मुस्कुराते हुए बाहर निकले. भक्त प्रहलाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे और उनकी भक्ति में सदैव लीन रहते थे. जबकि हिरण्यकश्यप अपने आप को भगवान मान बैठा था और प्रहलाद को भी अपनी जय जयकार करने के लिए दबाव बनाता रहता था. जिसको लेकर हिरण्यकश्यप प्रहलाद को मारने के अनेक जतन कर चुका था तब से बुराई के ऊपर अच्छाई की विजय को होलिका दहन के रूप में होली से 1 दिन पूर्व पूरे भारतवर्ष में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.
होलिका दहन में घर-घर से जलावन ले जाकर होलिका दहन स्थल पर एकत्रित किया जाता है और पूजा अर्चना के बाद होलिका दहन कर अपने अंदर की बुराइयों को होलिका के साथ जलाकर परिवार में खुशहाली और अमन-चैन की कामना की जाती है.