नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की होती है आराधना ; जाने विधि विधान और पूजा अर्चना के विषय में

नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की होती है आराधना ; जाने विधि विधान और पूजा अर्चना के विषय में

CHHAPRA DESK – शारदीय नवरात्र का दूसरा दिन माता रानी के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्म चारिणी की अराधना का दिन है. माता के इस स्वरूप के संदर्भ में पूजा विधि, कथा, मंत्र और आरती के संदर्भ में ज्योतिषाचार्य डाॅ सुभाष पाण्डेय बताते हैं कि ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना का दिन देवी के दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी का है. “ब्रह्म चारयितुं शीलं यस्याः सा ब्रह्मचारिणी” अर्थात् ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति करना जिसका स्वभाव हो वह ब्रह्मचारिणी. इस रूप में भी देवी के दो हाथ हैं और एक हाथ में जपमाला तथा दूसरे में कमंडल दिखाई देता है, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है, ब्रह्मचारिणी का रूप है. इसलिये निश्चित रूप से अत्यन्त शान्त और पवित्र स्वरूप है तथा ध्यान में मग्न है. यह रूप देवी के पूर्व जन्मों में सती और पार्वती के रूप में शिव को प्राप्त करने के लिये की गई तपस्या को भी दर्शाता है. देवी के इस रूप को तपश्चारिणी भी कहा जाता है.

“दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलौ |
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||”

दोनों करकमलों में अक्षमाला और कमण्डल धारम किये मां ब्रह्मचारिणी हम सब पर प्रसन्न रहें.
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में सबसे पहले मां को फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पण करें. उन्हें दूध, दही, घृत, मधु व शर्करा से स्नान कराएं और इसके देवी को प्रसाद चढ़ाएं. प्रसाद पश्चात आचमन कराएं और फिर पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें.
पूजा करने के समय हाथ में फूल लेकर इस मंत्र से मां की प्रार्थना करें. “दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।”  इसके बाद अक्षत, कुमकुम, सिंदूर आदि अर्पित करें. मां पूजा करने वाले भक्त जीवन में सदा शांत चित्त और प्रसन्न रहते हैं. उन्हें किसी प्रकार का भय नहीं सताता.


मां ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारद जी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी. इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें  ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया. एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया. कुछ दिनों तक कठिन व्रत रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे. तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं. मां ब्रह्मचारिणी को अपर्णा भी कहा जाता है. उन्होंने तपस्या के दौरान पत्तों के भोजन का भी त्याग कर दिया था. इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए. कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं.


कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया. देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की. यह आप से ही संभव था. आपकी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे. अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ. जल्द ही आपके पिता आपको लेने आ रहे हैं. मां ब्रह्मचारिणी ने शिव आराधना के माध्यम से तपश्चर्या का तरीका और लक्ष्य के प्रति समर्पण का भाव सिखाती हैं.

 

श्वेत वसना मां ब्रह्मचारिणी के एक हाथ में माला और एक हाथ में कमंडल है. मां का यह स्वरूप शक्ति के साधकों में बल भरता है. नवरात्रि के दूसरे दिन चैत्र शुक्ल प़क्ष द्वितीया का दिन साधना के आरंभिक दिनों का ही अंश है.

आरती

‘जय
अंबे ब्रह्माचारिणी माता।

जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।

ब्रह्मा जी के मन भाती हो।

ज्ञान सभी को सिखलाती हो।

ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।

जिसको जपे सकल संसारा।

जय गायत्री वेद की माता।

मां ब्रह्मचारिणी स्तुति मंत्र—
या देवी सर्वभू‍तेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
ब्रह्मचारिणी: ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।।

माॅ की आरती के पश्चात क्षमा प्रार्थना कर दिन भर माॅ ब्रह्म चारिणी का ध्यान मन में रखते हुए अपना कार्य मन वचन और कर्म में पवित्रता धारण कर करें पुनः सायं काल में संध्यावंदन, पूजन, आरती कर माता रानी का भजन कीर्तन करें. माता के इस स्वरूप की पूजा करने वाले व्यक्ति को मन से किए गए सभी कार्यों में विजय प्राप्त होती है. उसके अंदर त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य जैसे गुणों की वृद्धि होती है.

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