Chhapra Desk – जीवन में उपासना का प्रादुर्भाव होता है तो पुतना रुपी वासना उपासना को निर्मूल करना चाहती है और अनेक बाधाएं उत्पन्न करती है. लेकिन, जो मनुष्य तटस्थ रहता है तो कृष्ण रुपी उपासना उस बाधा को खत्म कर देते हैं. नन्द जी पुतना के मरने के बाद भी उसे पन्द्रह-पन्द्रह लाठी मारने को कहते है अर्थात पुतना रुपी वासना निर्मूल नहीं होती. अतः पन्द्रह माला जप बढ़ा देना चाहिए नहीं तो काम क्रोध रुपी वासना कब जागृत हो जाए कहा नहीं जा सकता. पुतना के शरीर के टुकड़े-टुकड़े किया गया अर्थात वासना एक वार में समाप्त नहीं होती.
उक्त बातें अयोध्या से पधारे स्वामी हरेंद्र शास्त्री महाराज ने सारण जिले के मांझी प्रखंड अंतर्गत एकडेंगवा ग्राम में राधा-कृष्ण मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा को लेकर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस पुतना के आध्यात्मिक रहस्य को बताते हुए कही. उन्होंने कहा कि पुतना वासना है कृष्ण उपासना है. वहीं माखन प्रसंग लीला में दिव्य झांकी निकाली गई. साथ ही साथ महाराज के भजनों से श्रोता झूम उठे. वहीं भागवत कथा श्रवण को लेकर काफी संख्या में श्रद्धालु भक्तजन उपस्थित रहे और भक्तिमय वातावरण में झुमके रहे.