मजदूर दिवस : सेल्फ एंप्लॉयड भी है देश के सच्चे सिपाही ; मजदूर दिवस की छुट्टी से कहां पड़ता है इन्हें फर्क ; प्रतिदिन सूर्योदय से सूर्यास्त के बाद भी करते हैं काम

मजदूर दिवस : सेल्फ एंप्लॉयड भी है देश के सच्चे सिपाही ; मजदूर दिवस की छुट्टी से कहां पड़ता है इन्हें फर्क ; प्रतिदिन सूर्योदय से सूर्यास्त के बाद भी करते हैं काम

CHHAPRA DESK – सही मायने में देखा जाए तो सेल्फ एंप्लॉयड व्यक्ति भी देश के सच्चे सिपाही हैं. जहां एक तरफ सभी सरकारी कार्यालय और निजी कार्यालय व प्रतिष्ठान बंद रहते हैं, वही सेल्फ एंप्लॉयड से जुड़े लोग सुबह से ही कोई टेंपो लेकर निकलता है तो कोई रिक्शा लेकर निकलता है. किसान हल और बैल लेकर खेत की तरफ निकलता है. कोई ठेला खोमचा लेकर गली-गली फेरी लगाता है तो कोई चाय-पान से लेकर अन्य दुकानें सजा कर ग्राहकों के इंतजार में बैठा रहता है.

 

कोई गली-गली चिल्लाता है कबाड़ी वाला आया है, कबाड़ी वाला आया है. मजदूरों का एक रूप यह भी है. इन्हें चैन नहीं है लेकिन जीमेवारिया बहुत है. प्रतिदिन सूर्योदय से सूर्यास्त के बाद भी ये रात होने तक काम करते हैं. पापी पेट का सवाल जो है!

1 मई को क्यों मनाया जाता है मजदूर दिवस

मजदूर दिवस का इतिहास करीब 137 वर्ष पुराना है. दरअसल मजदूर दिवस की जड़े अमेरिका में 1886 में हुए एक श्रमिक आंदोलन से जुड़ी हैं. आज जो रोजाना काम करने के 8 घंटे निर्धारित हैं और सप्ताह में एक दिन की छुट्टी का अधिकार है, वो सब इसी आंदोलन की देन है. 1880 का दशक अमेरिका समेत विभिन्न पश्चिमी देशों में औद्योगीकरण का दौर था. इस दौरान मजदूरों से 15-15 घंटे काम लिया जाता था. सूर्योदय से सूर्यास्त तक उन्हें काम करने के लिए मजबूर किया जाता था.

 

अमेरिका और कनाडा की ट्रेड यूनियनों के संगठन फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनाइज्ड ट्रेड्स एंड लेबर यूनियन ने तय किया कि मजदूर 1 मई, 1886 के बाद रोजाना 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं करेंगे. जब वो दिन आया तो अमेरिका के अलग-अलग शहरों में लाखों श्रमिक शोषण के खिलाफ हड़ताल पर चले गए. यहीं से बड़े श्रमिक आंदोलन की शुरुआत हुई. पूरे अमेरिका में श्रमिक सड़कों पर उतर आए थे. पुलिस ने गोलियां भी चलाई थी और कई मजदूर गोलियों के शिकार हुए थे.
भारत में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1923 को चेन्नई में की गई.

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