CHHAPRA DESK- बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के कटरा गढ़ में अवस्थित चामुंडा स्थान बिहार के सबसे प्रसिद्ध शक्तिपीठों में हैं. जिला मुख्यालय के पूर्वोत्तर में 30 किमी दूर स्थित कटरा गढ़ में शक्तिपीठ चामुंडा स्थान अवस्थित है. देवी चामुंडा का स्वरूप पिंडनुमा है, जो स्वअंकुरित बताई जाती है. यहां सालों भर श्रद्धालु भक्तों की भीड़ लगी रहती है. माना जाता है कि यहीं पर चंड और मुंड का वध हुआ था. देवी पूजन के लिए सोमवार, बुधवार और शुक्रवार का दिन शुभ माना जाता है. इसलिए इन दिनों भीड़ अधिक होती है.
प्रतिदिन प्रात:काल 6 बजे एवं सायंकाल 8 बजे चामुंडा माता की आरती होती है, जिसमें पुजारियों के अलावा भक्तगण भाग लेते हैं. फिर भोग-राग के बाद दर्शनार्थियों के लिए मंदिर खुल जाता है. दोपहर भोग-राग के बाद 12 से 1 बजे तक देवी के शयन का समय होता है और पट बंद रहता है.
माता का स्वरूप वैष्णवी है. इसलिए फल और मिष्ठान्न ही चढ़ाया जाता है. शारदीय नवरात्र के अवसर पर नौ दिवसीय विशेष धार्मिक अनुष्ठान होता है.
शास्त्रीय आख्यानों के अनुसार चंड-मुंड असुर बंधुओं का संहार देवी ने इसी स्थल पर किया था जहां वे विराजमान हैं. तभी से वे चामुंडा कहलाईं. कहते हैं कि इस ऐतिहासिक स्थल पर चंद्रवंशी राजाओं का साम्राज्य था. 13वीं सदी में चंद्रसेन सिंह नामक राजा यहां राज्य करता था और माता चामुंडा की आराधना कुलदेवी के रूप में करता था.
सदियों से जीर्ण-शीर्ण देवालय की जगह 1980 में नैमिषपीठाधीश्वर स्वामी नारदानंद सरस्वती के प्रिय शिष्य डॉ शौनक ब्रह्मचारी की प्रेरणा व प्रखंड अधिकारी ब्रजनाथ सिंह के प्रयास से जनसहयोग द्वारा भव्य मंदिर का निर्माण हुआ.
मंदिर का संचालन बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड द्वारा नियुक्त चामुंडा न्यास समिति करती है.
मुजफ्फरपुर-दरभंगा मार्ग में 10वें किमी पर मझौली से कटरा तक पक्की सड़क है, जो सही स्थिति में है. मंदिर पहुंचने के लिए ऑटो तथा बस सेवा लगातार उपलब्ध है. वर्तमान में कटरा प्रखंड मुख्यालय से मंदिर परिसर के बीच सड़क की दशा खराब है. बरसात के जलजमाव के कारण यात्रियों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है.
प्रधान पुजारी पंडित शिलानाथ झा कहते हैं कि जगत जननी माता चामुंडा सब पर कृपा करती हैं. सच्चे मन से आराधना करने वाला कभी खाली हाथ नहीं लौटता. माता की कृपा से बीमार चंगा होकर गए हैं.
चामुंडा न्यास समिति के अध्यक्ष रघुनाथ चौधरी का कहना है कि चामुंडा माता की कृपा से निरंतर मंदिर का विकास हो रहा है. श्रद्धालुओं की निष्ठा और विश्वास के कारण सालों भर भीड़ रहती है. चढ़ावे से प्राप्त धन से मंदिर की व्यवस्था होती है. माता की महिमा अपरम्पार है.