CHHAPRA DESK – सारण में अवैध रूप से संचालित इमरजेंसी अस्पताल स्वास्थ्य विभाग एवं जिला प्रशासन दोनों को एक साथ मुंह चिढ़ाने का काम कर रहे हैं. जिला प्रशासन कि जब कार्रवाई होती है तो उस अस्पताल का बोर्ड बदल जाता है, बाकी सब कुछ वही रहता है. ऐसा ही एक मामला पुन: छपरा शहर से सामने आया है. नाम है A-1 इमरजेंसी हॉस्पिटल. जो कि लगातार चर्चा में ही रह रहा है. जहां कर्ज के भी पैसे लुटाने के बाद गरीब मरीज पुनः छपरा सदर अस्पताल पहुंचा और जो उसने बताया वह चौंकाने वाला है. पीड़ित मरीज जिले के रिविलगंज थाना अंतर्गत अजमेरगंज इनई गांव निवासी स्वर्गीय शिवपूजन राय के 77 वर्षीय पुत्र छट्ठू राय बताए गए हैं. जिन्हें भी बीते 12 जून को छपरा सदर अस्पताल में इलाज के लिए लाया गया था लेकिन वहां से वह A-1 इमरजेंसी हॉस्पिटल पहुंचा दिया गया, जहां 6 दिनों में करीब ₹85000 का बिल बनाया गया और उस मरीज के कर्ज के रुपए समाप्त होने के बाद उसे छपरा सदर स्थल रेफर कर दिया गया. जहां मरीज ने के परिजनो ने अपनी व्यथा सुनाई और उस अस्पताल का बिल भी दिखाया जो कि करीब 80 से 50 हजार रुपए का ही है. ऐसे मामले पहले भी सामने आ चुके हैं. अब सवाल यह होता है कि सदर अस्पताल पहुंचने वाला मरीज निजी क्लीनिक कैसे पहुंच रहा है?
26 में को एंबुलेंस में पहुंचा दिया था मरीज को
बता दें कि बीते 26 में को 102 एंबुलेंस चालक और दलालों की सांठगांठ के बाद प्रसव पीड़िता छपरा सदर अस्पताल पहुंचते-पहुंचते एक फर्जी अस्पताल पहुंच गई. जहां उससे हजारों रुपए ऐंठ लिए गए. वह मरीज मशरक थाना क्षेत्र के जजौली मठिया निवासी मुन्ना कुमार की पत्नी ब्यूटी देवी को प्रसूति दर्द हुआ. जिसके बाद उसके परिजनों ने उसे मशरक पीएचसी ले जाकर इलाज कराया, जहां से गर्भवती महिला को सदर अस्पताल छपरा रेफर कर दिया गया. वहीं इसी बीच सरकारी एम्बुलेंस 102 से उसे सदर अस्पताल लाने के क्रम में ही एंबुलेंस चालक व अस्पताल में मौजूद दलालों के द्वारा निजी क्लीनिक में रेफर करने की बात कर सेटिंग कर ली गई. इसी क्रम में मरीज़ एम्बुलेंस से सदर अस्पताल भी नहीं पहुंचा कि अस्पताल के बाहर से ही दलालों के द्वारा उसे शहर के ही एक निजी क्लीनिक में ले जाकर भर्ती करा दिया गया.
24 अप्रैल को भी ए-वन इमरजेंसी हॉस्पिटल पर हुआ था हंगामा
बता दें कि सदर अस्पताल पहुंचते-पहुंचते अनेक मरीज किसी निजी अस्पताल पहुंच जा रहे हैं. जिसमें कहीं ना कहीं अस्पताल प्रशासन की निष्क्रियता भी है. क्योंकि गरीब और कम पढ़े लिखे मरीज को लेकर अस्पताल पहुंचने वाले लोग नहीं समझ पाते कि कौन अस्पताल कर्मी है और कौन एजेंट. बीते 24 अप्रैल को भी एक मरीज 14 वर्षीय अर्जुन कुमार को गिरने के कारण नाक में जख्म होने पर सदर अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन वहां से उक्त नर्सिंग होम का दलाल उसे लेकर वहां पहुंचा दिया. जहां रात भर में उसे मरीज को ₹20000 का बिल थमा दिया गया था. बिल का भुगतान नहीं करने पर मरीज को वहां बंधक ही बनाया गया था. लेकिन हो-हंगामा पर मामला ₹9000 में रफादफा किया गया था. जिसके बाद मरीज पुनः सदर अस्पताल पहुंचा और वहां उस मरीज का उपचार किया गया था.