जातीय जनगणना छलावा तो आर्थिक जनगणना मकड़जाल ;  नीतीश ने माना मुसहर और भुईया जाति हो गई अमीर, यादवों और भूमिहारों को लग गया गरीबी का तीर

जातीय जनगणना छलावा तो आर्थिक जनगणना मकड़जाल ; नीतीश ने माना मुसहर और भुईया जाति हो गई अमीर, यादवों और भूमिहारों को लग गया गरीबी का तीर

CHHAPRA DESK – बिहार सरकार द्वारा पहले जाति आधारित सर्वे का जो रिपोर्ट जारी किया गया, अभी उस रिपोर्ट की सत्यता पर लोगों का विमर्श और विरोध थमा भी नहीं था कि इसी बीच बिहार सरकार द्वारा आर्थिक सर्वे जाति के आधार पर किसके पास कितनी नौकरियां, कितनी संपत्ति है और कौन कितना गरीब है, इसके विषय में जो रिपोर्ट कार्ड जारी किया गया है, उस रिपोर्ट कार्ड पर भी तमाम सारे प्रश्न चिन्ह खड़े हो गए हैं? वैसे सत्यता भी यही है कि बिहार सरकार के द्वारा जो आर्थिक सर्वे जारी किया गया है वह आम आदमी के पल्ले नहीं पड़ रहा है और पढ़ा लिखा समुदाय से लेकर के बिना पढ़े लिखे लोग तक इस आर्थिक सर्वे पर अपना संदेह जाहिर कर रहे हैं. वैसे ऐसा हो भी क्यों नहीं? इसको लोग सिरे से झुठला रहे हैं और इसको एक मैनिपुलेट आर्थिक सर्वे और जातिगत जनगणना का आंकड़ा बता रहे हैं.

इसको कुछ तथ्यों से समझा जा सकता है :

पहले तो बिहार में जो जातिगत सर्वे किया गया उसमें यादवों की संख्या सबसे ज्यादा सारे 14.5 दिखलाई गई जो कि सभी चारो स्वर्ण जातियों की कुल संख्या से भी कहीं अधिक है. अभी इस पर विवाद थमा भी नहीं था कि आर्थिक सर्वे में पिछड़ी जातियों में सबसे ज्यादा गरीब यादव को बताया गया है. जबकि धरातल पर ऐसा देखने में आता है कि पिछड़ी जाति में अगर कोई सबसे संपन्न वर्ग है और जिसके पास धन बल, जन बल, बाहुबल है वह यादवों के पास ही है. लेकिन उपमुख्यमंत्री और राजद के समर्थन की जरूरत को देखते हुए नीतीश कुमार ने पूरी जातिगत और आर्थिक सर्वे को मैनिपुलेट किया गया है. इस तथ्य से आंखें बंद कर लिया और जनसंख्या में सबसे ज्यादा भागीदारी यादव की दिखा दी गई और गरीबी में सबसे गरीब यादव को बना दिया गया.

दबे ज़बान यादव भी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है. बाकी अन्य पिछड़ी जातियों की बात ही अलग है. सबसे आश्चर्यजनक तथ्य स्वर्ण जातियों में सबसे गरीब कौन इस बात को लेकर के भी सामने आया है, क्योंकि अगड़ी जातियों में सबसे संपन्न सबसे पढ़ा लिखा वर्ग भूमिहारों को माना जाता था. लेकिन आर्थिक सर्वे का जो आंकड़ा बिहार सरकार के द्वारा जारी किया गया है उस आर्थिक सर्वे के आंकड़े में अगड़ी जातियों में सबसे गरीब भूमिहारों को दिखाया गया है. यह बात भी कहीं से भी किसी के पल्ले नहीं पड़ रही है और इसीलिए इस पूरे के पूरी आर्थिक सर्वे को भी फर्जी बताया जा रहा है.

मुसहर और भुईया जाति हो गई अमीर

एक और तथ्य से भी यह बात प्रकाश में आती है कि आर्थिक सर्वे कहीं ना कहीं फर्जी और मैनिपुलेट है वह यह है कि मुसहर और भुईया यह जो जातियां हैं. जिनकी धरातल पर आज भी स्थिति काफी दयनीय है. और आज भी मुसहर जाति के लोग चूहा पकड़ करके खाने और जो नदी किनारे अईठा, केकड़ा पाया जाता है उसको भून करके अपना पेट पालन करते हैं. उनकी जाति के 42 से 45% लोगो को आर्थिक रूप से संपन्न दिखाया गया है. इस आंकड़े को भी देखकर ऐसा लगता है कि जानबूझकर के जो-जो दल नीतीश कुमार और इस सरकार के विरोधी थे उनकी जनसंख्या को कम और उनके गरीबों को भी कम दिखाकर उनको अमीर साबित करने का प्रयास किया गया है.

वहीं जो दल नीतीश कुमार को समर्थन करते हैं उनके संख्या को ज्यादा और उनको ज्यादा लाभ पहुंचाने के लिए उनको फर्जी और गलत रूप से गरीब बता करके आंकड़ा पेश किया गया है. दबे जुबान लोगों के द्वारा यह भी बात कही जा रही है कि चुकि बिहार सरकार में ललन सिंह का वर्चस्व है इसलिए अगड़ी जाति में भूमिहारों को ज्यादा लाभ दिलाने के लिए उसको स्वर्ण जाति में गरीब बना करके पेश किया गया है. ताकि उनके पास जो संपत्ति और जमीन है उसको इस आंकड़े के आड़ में छुपा कर सारा फोकस दूसरी अगड़ी जातियों की ओर कर दिया जाए, ताकि भूमिहारों की संपत्ति और सही आंकड़ा सामने नहीं आ सके.

बिहार सरकार का यह पूरा का पूरा आंकड़ा सिरे से फर्जी और खारिज करने के लायक है. क्योंकि, इस पूरी की पूरी रिपोर्ट में चाहे व जातिगत सर्वे का रिपोर्ट हो या फिर आज जारी किया गया आर्थिक सर्वे, यह दोनों ही रिपोर्ट सिर्फ और सिर्फ राजद का समर्थन लेने के लिए और एक जाति विशेष और कुछ जातियों को ज्यादा लाभ पहुंचाने के नीयत से इस प्रकार का रिपोर्ट बनाकर के पेश किया गया है. सबसे बड़ी बात यह है कि पिछड़ी जातियों में एक विमर्श चल रहा था कि पिछड़ी जातियों को जो आरक्षण मिलता है उस आरक्षण में सबसे ज्यादा मलाई यादव, कोईरी और कुर्मी को प्राप्त होता है. इसलिए इन जातियों से ध्यान कम करके जो पिछड़ी जाति में और भी लगभग 1000 जातियां हैं जिनको सही प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता है.

उनको सरकारी नौकरियों और आर्थिक मदद में समाज के अग्रिम वर्ग में शामिल करने का प्रयास किया जाए. इसकी मांग लगातार उठ रही थी. ऐसे में यादव, कुर्मी, कोईरी जैसी जो जातियां हैं, वह मलाईदार पोस्ट के साथ-साथ सत्ता में भी अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहती थी. इसके लिए जातिगत सर्वे और आर्थिक सर्वे को आधार बनाकर इसको मैनिपुलेट करके एक ऐसा आंकड़ा पेश किया गया है कि यह जो विमर्श था कि पिछड़ों के आरक्षण का एक बड़ा हिस्सा यादव, कुर्मी, कोईरी जैसी जातियां खा जाती हैं और इससे बाकी पिछड़ी जातियों को लाभ नहीं मिल पाता है.

इसलिए इस विमर्श को भटकाव देने के लिए और बाकी की पिछड़ी जातियों को पिछड़ी बनाए रखने की साजिश के तहत यह पूरा का पूरा बनावटी और फर्जी आंकड़ा पेश करने का प्रयास किया गया है. इसकी गंभीर जांच और विमर्श की जरूरत है यह आंकड़ा कहीं से भी मानने योग्य नहीं है. आम जनमानस भी इस आंकड़े को देखकर के सहज अंदाज लगा सकता है की वास्तविकता क्या है ? यह आंकड़ा सत्य से कोसों दूर है. सही तथ्यों को छुपा कर सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने के लिए और अपनी सत्ता को बचाए रख करके सत्ता सुख भोगते रहने की नीयत से इस तरीके के आंकड़े को पेश करके जनता को ठगने का काम किया गया है.


साभार : राजीव कुमार सिंह ‘अधिवक्ता’

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