नवरात्र के अन्तिम दिन नवमी को माता रानी के सिद्धिदात्री स्वरूप की होती है अराधना

नवरात्र के अन्तिम दिन नवमी को माता रानी के सिद्धिदात्री स्वरूप की होती है अराधना

CHHAPRA DESK-  नवरात्र के अन्तिम दिन नवमी को माता रानी के सिद्धिदात्री स्वरूप की अराधना की जाती है.आइए जानते हैं माता के इस स्वरूप की कथा, पूजा विधि और आरती के विषय में प्रख्यात ज्योतिषाचार्य डाॅ सुभाष पाण्डेय से. उन्होंने बताया कि देवी का अन्तिम और नवं रूप है सिद्धिदात्री का. जैसा कि नाम से ही ध्वनित होता है. सिद्धि अर्थात् मोक्षप्रदायिनी देवी समस्त कार्यों में सिद्धि देने वाला तथा समस्त प्रकार के ताप और गुणों से मुक्ति दिलाने वाला रूप है. इस रूप में चार हाथों वाली देवी कमलपुष्प पर विराजमान दिखाई देती हैं. हाथों में कमलपुष्प, गदा, चक्र और पुस्तक लिये हुए हैं. मां सरस्वती का रूप है यह. इस रूप में देवी अज्ञान का निवारण करके ज्ञान का दान देती हैं, ताकि मनुष्य को उस परमतत्व परब्रह्म का ज्ञान प्राप्त हो सके. परमात्मतत्व से व्यक्ति का परिचय हो सके. अपने इस रूप में देवी सिद्धों, गन्धर्वों, यक्षों, राक्षसों तथा देवताओं से घिरी रहती हैं. इस रूप की अर्चना करके जो सिद्धि प्राप्त होती है वह इस तथ्य का ज्ञान कराती है कि जो कुछ भी है वह अन्तिम सत्य वही परम तत्व है. जिसे परब्रह्म अथवा आत्मतत्व के नाम से जाना जाता है. पुराणों के अनुसार देवी सिद्धिदात्री के पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व यह आठ सिद्धियां हैं. देवी पुराण के अनुसार सिद्धिदात्री की उपासना करने का बाद ही भगवान् शिव को सिद्धियों की प्राप्ति हुई थी. उनका आधा शरीर नर और आधा शरीर नारी का उनकी ही कृपा से प्राप्त हुआ था. इसलिए शिव जी विश्व में अर्द्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए थे. माना जाता है कि देवी सिद्धिदात्री की आराधना करने से लौकिक व परलौकिक शक्तियों की प्राप्ति होती है. मां सिद्धिदात्री की उपासना के लिए निम्न मन्त्र का जाप किया जाता है.

“सिद्धगन्धर्वयक्षाघैरसुरैरमरैरपि । सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ॥”

इस प्रकार नवरात्रों के नौ दिनों में पूर्ण भक्तिभाव से देवी के इन रूपों की क्रमशः पूजा अर्चना की जाती है. मनोनुकूल फलप्राप्ति की कामना से देवी की अर्चना की जाती है. ये समस्त रूप सम्मिलित भाव से इस तथ्य का भी समर्थन करते हैं कि शक्ति सर्वाद्या है. उसका प्रभाव महान है. उसकी माया बड़ी कठोर तथा अगम्य है तथा उसका महात्मय अकथनीय है और इन समस्त रूपों का सम्मिलित रूप है. वह प्रकृति अथवा योगशक्ति है जो समस्त चराचर जगत का उद्गम है तथा जिसके द्वारा भगवान समस्त जगत को धारण किये हुए हैं.
मां सिद्धिदात्री हम सबकी मनोकामनाएँ पूर्ण करें तथा हम सबको अपने प्रयासों में सिद्धि प्रदान करें.
मां दुर्गा जी की नवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री माता है. ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं. ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्री कृष्ण जन्म खण्ड में यह संख्या अठारह बतायी गयी है.

इनके नाम इस प्रकार हैं.

अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायप्रवेशन, वासिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरणसामर्थ्य, अमरत्व, सर्वन्यायकत्व, भावना, सिद्धि

सिद्धिदात्री मंत्र

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

यह सिद्धिदात्री मंत्र बहुत ही शक्तिशाली माना जाता है. इसके जप से हर कामना पूर्णता को प्राप्त होती है.

मां सिद्धिदात्री की कथा

मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं. देवी पुराण के अनुसार भगवान् शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था. इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था. इसी कारण वह लोक में अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए. मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं. उनका वाहन सिंह है. ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं. इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शङ्ख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है. नवरात्र-पूजन के नवें दिन इनकी उपासना की जाती है. इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है. सृष्टि में कुछ भी उसके
लिये अगम्य नहीं रह जाता. ब्रह्माण्ड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है. प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह मां सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर प्रयत्न करे. उनकी आराधना की ओर अग्रसर हो. इनकी कृपासे अनन्त दुःखरूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ वह मोक्ष को प्राप्त करता है. इन सिद्धिदात्री मां की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक-पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है. लेकिन सिद्धिदात्री मां के कृपा पात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे. वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहा से ऊपर उठकर मानसिक रूप से मां भगवती के दिव्य लोमें विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरन्तर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है. मां भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है. इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती.
मां के चरणों का यह सानिध्य प्राप्त करने के लिये हमें निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करनी चाहिये. मां भगवती की कथा का श्रवण और पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शान्ति दायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है.

सिद्धिदात्री माता की आरती

जय सिद्धिदात्री मां तू सिद्धि की दाता। तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता।
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि। तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि।।
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम। जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम।
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है। तू जगदंबे दाती तू सर्व सिद्धि है।।
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो। तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो।
तू सब काज उसके करती है पूरे। कभी काम उसके रहे ना अधूरे।।
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया। रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया।
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली। जो है तेरे दर का ही अंबे सवाली।।
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा। महा नंदा मंदिर में है वास तेरा।
मुझे आसरा है तुम्हारा ही ।जय जय जय सिद्धिदात्री मैया।

श्लोक:

या देवी सर्वभू‍तेषु सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अवतार वर्णन:

आदिशक्ति नवदुर्गा के रूपों में देवी सिद्धिदात्री नौवीं शक्ति हैं, शास्त्रानुसार नवरात्र पूजन की नवमी पर देवी सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है. आदिशक्ति ने जगत उधार के लिए नौ रूप धारण किए और इन रूपों में नवम रूप है देवी सिद्धिदात्री. देवी सिद्धिदात्री प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण जगत की रिद्धि सिद्धि अपने भक्तों को प्रदान करती हैं. अतः नवरात्र की नवमी पर शास्त्रों के अनुसार तथा संपूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है. सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है. ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है. नवरात्र पूजन की नवमी पर देवी सिद्धिदात्री के पूजन से सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है.
स्वरुप वर्णन: देवी सिद्धिदात्री का स्वरूप परम सौम्य है, शास्त्रों में देवी का स्वरुप चतुर्भुजी देवी (चार बाहों वाली देवी) के रूप में वर्णित किया गया है. देवी सिद्धिदात्री की ऊपरी दाईं भुजा में इन्होंने चक्र धारण किया हुआ है. जिससे ये सम्पूर्ण जगत का जीवनचक्र चला रही हैं. नीचे वाली दाईं भुजा में इन्होंने गदा धारण की हुई है जिससे ये दुष्टों का दलन करती हैं. देवी सिद्धिदात्री ने ऊपरी बांईं भुजा में शंख धारण किया हुआ है जिसकी ध्वनि से सम्पूर्ण जगत में धर्म का अस्तित्व व्याप्त है. इन्होंने नीचे वाली बांईं भुजा में कमल का फूल धारण किया है जिससे ये सम्पूर्ण जगत की पालन करती हैं. शास्त्रों में देवी सिद्धिदात्री को कमल आसन पर विराजमान बताया गया है. देवी सिद्धिदात्री के वाहन का वर्णन सिंह रूप में किया गया है. मां रक्त वर्ण (लाल) रंग के वस्त्र पहने हुए हैं. इनके शरीर और मस्तक नाना प्रकार के स्वर्ण आभूषण सुसज्जित हैं. इनकी छवि परम कल्याणकारी है जो सम्पूर्ण जगत को सौभाग्य की प्राप्ति करवाती हैं. सिद्धिदात्री का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया गया है. देवतागण, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी देवी सिद्धिदात्री के भक्त हैं.

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