CHHAPRA DESK – सावन की दूसरी सोमवारी को पौराणिक महाराज मायापति शिलनिधी की नगरी शिलहौरी स्थित बाबा शिलानाथ का जलाभिषेक हजारों शिव भक्तों ने किया. प्रधान पुजारी धर्मेंद्र उपाध्याय के अनुसार मध्य रात्रि से ही जलाभिषेक प्रारंभ हो गया जो दिन के तीन बजे तक लगातार होता रहा एक अनुमान के अनुसार 40 हजार भक्तो द्वारा जलाभिषेक किया गया है. पिछली बार की तरह इस बार भी अरघा द्वारा जलाभिषेक की व्यवस्था की गई थी. इस बार महिलाओं को भी कतार में लाने के लिए पुरुषों की तरह महिलाओं का भी व्यवस्था किया गया था. इसलिए इस बार कम परेशानी हुई. दूसरी तरफ प्रशासन और पुलिस प्रशासन की लगातार चाक चौबंद व्यवस्था से किसी प्रकार की अप्रिय घटना की सूचना नही है.
मंदीर का पौराणिक है इतिहास
देवऋषि नारद को अपने ब्रह्मचर्यी होने का अभिमान हो गया था. इसी अभिमान से मुक्ति के लिए भगवन विष्णु ने एक माया नगरी के रूप में शिल्हौडी की स्थापना की थी. इस नगरी के राजा शिलनिधि थे और उनकी पुत्री थी विश्वमोहिनी. परिस्थितिजन्य देवऋषि नारद राजा शिलनिधि की पुत्री माता लक्ष्मीवतार विश्वमोहनी पर मोहित होकर उनसे शादी की ईच्छा संजो लेते है. विश्वमोहिनी के शादी योग्य होने पर स्वयंवर का आयोजन होता है. उस स्वयंवर में खूद को सुन्दर दिखाने के लिए देवर्षि नारद भगवान विष्णु से श्रीहरि का रूप मांगकर पहुंचते है. चलाकी से भगवन विष्णु उन्हें वानर का रूप दे दिए थे, बन्दर का रूप देखकर विश्वमोहिनी हंसकर उनसे आगे निकल जाती है. बाद में किसान रूप में पहुंचे भगवान विष्णु कों वरमाला पहनाकर उन्हें अपना वर स्वीकार कर लेती है. परेशान नारद को सैनिकों ने अपनी सूरत देखने की सलाह देते है, कुएं के पानी में बंदर का रूप देख देवर्षि नारद क्रोधित हो जाते है. क्रोध में ही भगवन विष्णु को पत्नी वियोग का श्राप दे देते है. इस तथ्य की चर्चा शिव पूराण में अंकित है और राम चरित्र मानस में भी इसकी चर्चा आती है .
मोह भंग कुआ आज भी है मौजूद
देवऋषि नारद ने जिस कुएं में अपना चेहरा देखा था वों कुआ आज भी अवशेष के रूप में मौजूद है ऐसा बताया जाता है. कहा जाता है कि इस कुएं में वर्षो पूर्व तक किसी व्यक्ति को अपना चेहरा बन्दर जैसा ही दिखता था। कुंआ अब भी मौजूद है किंतु अब ऐसा नहीं होता है.
भगवान शिव सबकी मुरादे करते है पूरी
यहां भगवन शिव की कृपा भक्तों को मिलती है. प्रत्येक साल लाखों की संख्या में यहा शिव भक्त भगवान शिव को जलाभिषेक के लिए पहुंचते है. सावन में रोज यहां हजारों लोग पहुंचते है. सावन सोमवारी और शिवरात्रि पर यह संख्या बहुत बढ़ जाती है. शिवभक्तों की भीड़ प्रशासन के लिए चुनौती के रूप में होती है.