सारण के संत : बहिआरा चंवर का रहस्यमयी मुंजिया बाबा समाधि स्थल

सारण के संत : बहिआरा चंवर का रहस्यमयी मुंजिया बाबा समाधि स्थल

CHHAPRA / SIWAN – बिहार के सिवान जिले के भगवानपुर प्रखंड मुख्यालय से लगभग 4 किलोमीटर पूर्व में बहिआरा चंवर के एकांत में, मुंजिया बाबा, जिन्हें जंगली बाबा के नाम से भी जाना जाता है, का समाधि स्थल स्थित है. यह स्थान अपनी रहस्यमयता और शांति के लिए जाना जाता है. समाधि स्थल एक सुनसान जगह पर स्थित है, जिसके चारों ओर लगभग 5 किलोमीटर तक कोई घर नहीं है. चारों तरफ मूंज उगा हुआ है, जो इसे एक जंगल जैसा रूप देता है. समाधि के पास एक विशाल तालाब है, जो अब जीर्ण अवस्था में है. तालाब के पश्चिमी तट पर समाधि स्थल स्थित है.

वर्तमान में, अवध बाबा समाधि स्थल की देखभाल कर रहे हैं. लगभग 100 वर्ष की आयु के बाबा अकेले रहते हैं और एक सरल जीवन व्यतीत करते हैं. वे एक वैष्णव संत हैं, जो कंठी धारण करते हैं और राम नाम का कीर्तन करते रहते हैं. वे दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं. इस स्थान का सबसे बड़ा रहस्य है अवध बाबा का जीवन 100 वर्ष की आयु में अकेले रहना और जीवन यापन करना जो कि आश्चर्य का विषय है.

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रामनवमी के दिन लगता है मेला

साल में एक बार, रामनवमी के दिन, यहां एक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें पूरी तस्मै का भंडारा होता है. स्थानीय लोग, त्रिलोकीनाथ सोनी और उनके मित्र, इस स्थान के विकास के लिए प्रयास कर रहे है. बहिआरा चंवर का मुंजिया बाबा समाधि स्थल एक रहस्यमय और शांत स्थान है. यदि सरकार और स्थानीय लोग मिलकर प्रयास करें, तो इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है. अवध बाबा के भजन सुनकर मन को शांति मिलती है. उनके भजनों में राम कथा के विभिन्न प्रसंगों का वर्णन होता है. वे अपनी मधुर वाणी में राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान के गुणों का बखान करते हैं. उनके भजनों में भक्ति और प्रेम का अद्भुत संगम होता है. ऐसा माना जाता है कि बाबा का आशीर्वाद सभी के लिए फलदायी होता है. जो भी व्यक्ति सच्चे मन से बाबा के पास आता है, उसे बाबा का आशीर्वाद अवश्य मिलता है. बाबा के आशीर्वाद से लोगों के दुख दूर होते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

बाबा का संदेश :

बाबा का संदेश है कि मनुष्य को सदैव सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए. उन्हें भगवान राम की भक्ति में लीन रहना चाहिए और सभी जीवों के प्रति दया भाव रखना चाहिए. बाबा को धार्मिक ग्रंथों का गहरा ज्ञान है. वे अपनी बातों से लोगों को धर्म और आध्यात्मिकता के महत्व को समझाते हैं. बाबा का ज्ञान लोगों को सही मार्ग चुनने में मदद करता है. समाधि स्थल के आस-पास कुछ पेड़ हैं, जो इस निर्जन भूमि में जीवन का प्रतीक हैं. लेकिन, अभी भी यहां और अधिक वृक्षों की आवश्यकता है, ताकि यह स्थान एक सुंदर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सके. यहां की शांति और पवित्रता पर्यटकों को आकर्षित करेगी, और उन्हें एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करेगी. यह स्थान एक मरुस्थल के बीच में एक हरे भरे द्वीप की तरह है, जहां चरवाहे और श्रमिक अपनी थकान मिटाने आते हैं. यहां की शांति और पवित्रता उन्हें नई ऊर्जा प्रदान करती है, और वे अपने काम पर वापस लौट जाते हैं.

मुंजिया बाबा का रहस्यमयी जीवन

मुंजिआ बाबा, एक ऐसी दिव्य आत्मा, जिनके चारों ओर रहस्य और अलौकिक शक्तियों का आवरण था. ग्रामीण जन उन्हें आध्यात्मिक और दैवीय शक्तियों से परिपूर्ण मानते थे. उनकी कहानियां आज भी लोककथाओं में जीवित हैं, जो उनके चमत्कारों और अलौकिक उपस्थिति का प्रमाण देती हैं.
एक ऐसी ही घटना है, जब एक विषधर सर्प ने मुंजिआ बाबा को डस लिया. जहां एक साधारण मनुष्य के लिए यह प्राणघातक होता, वहीं बाबा के लिए यह घटना उनकी दिव्य शक्ति का प्रदर्शन बनी. कुछ ही क्षणों में, वह विषधर सर्प स्वयं ही मृत्यु को प्राप्त हो गया, मानो बाबा की आध्यात्मिक ऊर्जा के समक्ष उसकी विष शक्ति क्षीण पड़ गई हो. यह घटना ग्रामीणों के मन में बाबा के प्रति श्रद्धा और विश्वास को और भी गहरा कर गई.


एक अन्य घटना, जो उनके अलौकिक अस्तित्व का प्रमाण देती है, वह है नजीबा गांव के एक वयोवृद्ध व्यक्ति का अनुभव. एक रात, मठिया में अष्टयाम का आयोजन चल रहा था. रात्रि के बारह बजे के करीब, जब गांव के लोग नजीबा की ओर प्रस्थान कर रहे थे, तो उन्हें तब आश्चर्य हुआ, जब उन्होंने मुंजिआ बाबा को अपने साथ चलते हुए पाया. बाबा, हाथ में लाठी लिए, उनके आगे-आगे चल रहे थे, मानो उनका मार्गदर्शन कर रहे हों. जब ग्रामीणों ने उन्हें पुकारा, तो वे अचानक अदृश्य हो गए, जैसे कि वे केवल एक छाया थे. जो कुछ क्षणों के लिए प्रकट हुई और फिर विलीन हो गई.
इन कहानियों ने मुंजिआ बाबा को एक रहस्यमय और पूजनीय व्यक्तित्व बना दिया. उनकी कहानियां आज भी ग्रामीणों के दिलों में जीवित हैं, जो उनकी दिव्य उपस्थिति और चमत्कारों का स्मरण कराती हैं.

साभार : प्रो (डॉ) अमरनाथ प्रसाद (JPU)

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