अल्ट्रासाउंड कराने के लिए यहां प्रतिदिन होती है मारामारी ; सुबह 5:00 बजे से लगता है नंबर

अल्ट्रासाउंड कराने के लिए यहां प्रतिदिन होती है मारामारी ; सुबह 5:00 बजे से लगता है नंबर

CHHAPRA DESK- छपरा सदर अस्पताल में अल्ट्रासाउंड विभाग की स्थिति सुधारने का नाम नही ले रही है. जिला प्रशासन के लाभ प्रयास के बावजूद भी यहां 20 से 30 मरीज का ही अल्ट्रासाउंड प्रतिदिन हो पता है. इसके बाद अगर कोई इमरजेंसी केस भी आ जाए तो उसे बाहर से अल्ट्रासाउंड कराना पड़ता है. वैसे बता दें कि छपरा सदर अस्पताल स्थित अल्ट्रासाउंड विभाग 10:00 बजे से 12:00 बजे तक ही चलता है. उतनी देर में जितने लोग पर्ची कटवाए हैं अगर वहां मौजूद हैं तो अल्ट्रासाउंड हो जाएगा. अन्यथा फिर रुपए खर्च कर बाहर से अल्ट्रासाउंड करवाने पड़ेंगे. आज सोमवार को भी सुबह 5:00 बजे से नंबर लगाने के बाद करीब 30 लोगों को ही अल्ट्रासाउंड कराए जाने का पर्ची काटा गया.

बावजूद इसके उसमें से कुछ लोगों ने सदर अस्पताल में अल्ट्रासाउंड नहीं होने के बाद मजबूरन बाहर से अल्ट्रासाउंड करवाया है. हालांकि अल्ट्रासाउंड के लिए पर्ची कटवाए जाने को लेकर आज सोमवार को निबन्धन कार्यालय पहुंचे मरीज़ों ने भी जमकर हो हल्ला व हंगामा किया. वही हो हल्ला को देख अस्पताल में पदस्थापित महिला पुलिसकर्मी भी रफू चक्कर हो गए. जब स्वास्थ्य कर्मियों ने इसकी सूचना पुलिसकर्मियों को दी तो उन लोगों ने ओपीडी में जाने से मना कर दिया. बता दें कि दूरदराज से जांच कराने आय मरीजों को इन दिनों काफी परेसानी झेलनी पड़ रही है.

आलम तो यह हो गया है कि अल्ट्रासाउंड जांच के लिए जहां सुबह 4:00 बजे से मरीज़ कतार में खड़े हो जाते हैं तो वहीं अब एक दिन पूर्व शाम से ही मरीज के लिए कतार में खड़े जांच के लिए पर्ची कटवाने पहुंच रहे है. इस मौके पर रिविलगंज से आए दिनेश कुमार ने बताया कि हम लोग पिछले चार दिनों से जांच के लिए आ कर लौट जा रहे हैं. सुबह आने पर नंबर फुल हो जा रहा है. जिसके बाद हम लोगों ने यह निर्णय लिया कि अस्पताल में जांच के लिए एक दिन पूर्व ही शाम में ही लाइन में खड़े हो जाये.

वही सोमवार को उनका जांच भी सबसे पहले ही किया गया. विदित हो कि अस्पताल में अल्ट्रासाउंड जांच के लिए अगर एक मरीज चाहे की एक ही दिन में पर्ची कटवा कर जांच करा लें तो यह मुमकिन नही है. एक मरीज़ को जांच कराने में तीन दिन का वक्त लग ही जा रहा है. जांच से लेकर रिपोर्ट आने तक अगर गंभीर मरीज को इस तरह की परेशानी झेलनी पड़ी तो मरीज़ की मौत भी हो सकती है. नहीं तो उसे रुपए खर्च कर प्राइवेट जांच घर का सहारा लेना पड़ेगा.

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