CHHAPRA DESK- लोक आस्था के महापर्व छठ के दूसरे दिन 18 नवंबर शनिवार को व्रती महिला-पुरुष 24 घंटे के निर्जला उपवास रहकर खरना किया. खरना के दिन सुबह से व्रती निर्जला रहकर शाम के समय गंगा समेत अन्य पवित्र नदियों एवं तालाब में स्नान करके पीला व लाल वस्त्र धारण कर पूरी पवित्रता के साथ व्रती मिट्टी के चूल्हा पर आम की लकड़ी से दूध व गुड़ का रसियाव व रोटी बनाया. जिसके बाद सूर्य व उनकी बहन छठी मईया को स्मरण कर रोटी-रसियाव व फल का प्रसाद ग्रहण किया. इससे पूर्व भक्तिमय वातावरण में छठ व्रती महिलाओं ने मांगलिक व छठ गीत गाया. छठ गीत से वातावरण भक्तिमय हो गया. वहीं धूप, दीप, अगरबत्ती की सुगंध से मन पवित्र और वातावरण सुगंधित हो गया. वहीं व्रती के प्रसाद ग्रहण करने के बाद परिवार के अन्य सदस्यों ने प्रसाद ग्रहण किया.
24 घंटे के बाद पहला अर्घ्यदान 19 नवंबर को
छठ पूजा के तीसरे दिन रविवार को खरना के 24 घंटे बाद व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्यदान करेंगे. व्रती निर्जला उपवास के बाद शाम के समय गंगा नदी समेत अन्य पवित्र नदियों में खड़ा होकर बांस के बने कलसूप में नारियल, फल-फूल के साथ डूबते सूर्य को अर्घ्यदान करते हैं. छठ व्रत ही ऐसा व्रत है, जहां डूबते सूर्य की भी पूजा की जाती है. अस्ताचलगामी सूर्य के अर्घ्यदान के बाद व्रती अपने घर वापस आती है. छठ में मन्नत वाले कई व्रती नदी घाट पर ही गंगा की सेवा करती है. नदी घाट से वापस आकर व्रती आंगन या छत पर मिट्टी के बने कोशी को षष्ठी देवी (छठी मईया) के रूप में पूजन करती है, जिसे कोसी भरना कहा जाता है. कोसी को ईख के चनना बनाकर इसके नीचे रखा जाता है. इसके बाद छठी मइया की पूजा करती है, इस दौरान महिलाएं छठ व मांगलिक गीत गाती हैं.
36 घंटे निर्जला व्रत के बाद पारण 20 नवंबर को
लोक आस्था के महापर्व के चौथे दिन 20 नवंबर सोमवार को व्रती उदीयमान सूर्य को अर्घ्यदान करेंगे. व्रती उगते सूर्य को अर्घ्यदान करके नदी घाटों में बांस के कलसूप में ऋतु फल रखकर पानी में उतरकर भगवान भास्कार के उदीयमान होने का इंतजार करेंगे. सूर्य के उगने के बाद व्रती उनका स्मरण कर परिवार के दीर्घायु व स्वस्थ्य जीवन की कामना करते है. घर के सदस्य दूध से अर्घ्यदान करते हैं. सूर्य के अर्घ्य अर्पण के बाद लोक आस्था के महापर्व पूरा हो जाता है.